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दर्शक को कुरूक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच लड़ाई के युद्ध को पौराणिक काल का सबसे विनाशकारी युद्ध माना जाता है । इस युद्ध में करोड़ों योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए थे । हिन्दुओं के धर्मग्रंथ महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार यह युद्ध वास्तव में धर्म और अधर्म के बीच लड़ा गया था । अर्थात जो योद्धा पाण्डवों की ओर से युद्ध में भाग ले रहे थे वह धर्म के पक्ष में थे और जिसने कौरवों की ओर से युद्ध लड़ा वह अधर्म के पक्ष में था कौरवों में सबसे बड़ा दुर्योधन था जिसके चरित्र को पूरे महाभारत में एक अधर्मी की तरह दर्शाया गया है परंतु जब हम महाभारत के स्वर्गारोहण पर्व को पढ़ते हैं तो हमें पता चलता है कि मृत्यु के बाद दुर्योधन समेत सभी कौरवों को स्वर्ग में जगह मिली तो दशमी को अब आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि आखिर दुर्योधन जैसे अधर्मी को मृत्यु के बाद स्वर्ग में स्थान क्यों मिला तो मैं आपको बता दूं कि इस सवाल का जवाब भी महाभारत में वर्णित है । आज के इस एपिसोड में हम आपको इसी सवाल के जवाब के बारे में बताएंगे तो हमारे साथ वीडियोगेम तक जरूर बने रहिए । नमस्कार दर्शकों तथा वालंटियर्स पर आपका स्वागत है । महाभारत के स्वर्गारोहण पर्व में वर्णित कथा के अनुसार कुरुक्षेत्र के युद्ध में विजयी होने के पश्चात युधिष्ठिर ने 36 साल तक हस्तिनापुर पर राज किया । इसके पश्चात जब भगवान कृष्ण अपनाते ही त्याग दिया तो युधिष्ठिर समझ गए कि अब उन लोगों का भी पृथ्वी से जाने का समय आ गया है । उसके बाद युधिष्ठिर ने अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को हस्तिनापुर का राजपाट सौंप दिया और फिर अपने चारों भाइयों और द्रौपदी सहित सशरीर स्वर्ग जाने को प्रस्थान कर गए । इसी क्रम में लोगों के साथ

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एक कुत्ता भी हो लिया । फिर पांचों पांडव और द्रौपदी कई तीर्थ होते हुए हिमालय पर्वत पहुंचे जहां भगवान शिव ने उन लोगों को स्वर्ग जाने का मार्ग दिखाया । इस तरह सभी वहां से स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर गए । इसी क्रम में सबसे पहले द्रौपदी फिर नकुल सहदेव उसके बाद अर्जुन और फिर भी एक एक कर नीचे गिर गए । अंत में युधिष्ठिर और उनके साथ रहा कुत्ता सशरीर स्वर्ग के द्वार पर पहुंचे जहां धर्मराज ने कुत्ते को अंदर जाने से रोक दिया । तब युधिष्ठर ने धर्मराज से कहा भगवन् मैं इस कुत्ते के बिना स्वर्ग के अंदर नहीं जा सकता । इसके बाद मैं कुत्ता जो वास्तव में स्वयं धर्मराज ही थे अपने वास्तविक रूप में आ गए । उसके बाद युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग पहुंचे । स्वर्ग लोक में पहुंचकर धर्मराज युधिष्ठिर ने देखा कि दुर्योधन स्वर्गीय शोभा संपन्न हो तेजस्वी देवताओं तो था पूर्ण कर्मा सादी गणों के साथ एक दिव्य सिंहासन पर बैठ कर सूर्य के समान दैदीप्यमान हो रहा है । दुर्योधन को ऐसी अवस्था में थी उसे मिली हुई शोभा और संपत्ति का अवलोकन कर राजा युधिष्ठिर क्रोध से भर गए और सहसा दूसरी ओर लौट गए । फिर उच्च स्वर में सब लोगों से बोले देवताओं जिसके कारण हमने अपने समस्त प्रिय और बंधुओं का हठ पूर्वक युद्ध में संहार कर डाला और सारी पृथ्वी उजाड़ डाली जिसने पहले हम लोगों को महान वन में भारी क्लेश पहुंचाया था तथा जो निर्दोष अंगों वाली हमारी धर्मपरायण पत्नी पांचाल राजकुमारी द्रौपदी को भरी सभा में गुरुजनों के समीप घसीट लाया था उस लोभी और दूरदर्शी दुर्योधन के साथ बैठ कर मैं इन पुराने लोगों को पाने की इच्छा नहीं रखता । देवगण मैं दुर्योधन को देखना भी नहीं चाहता । मेरी तो वही जाने की इच्छा है जहां मेरे

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भाई हैं युधिष्ठिर की बातें सुनकर नारद जी पहले तो मुस्कराए और फिर हंसते हुए बोले युधिष्ठिर ऐसा न कहो स्वर्ग में निवास करने पर पहले का बैर विरोध शांत हो जाता है । महा बाहू युधिष्ठिर तुम्हें राजा दुर्योधन के प्रति किसी तरह ऐसी बात मुंह से नहीं निकालनी चाहिए क्योंकि दुर्योधन ने कुरुक्षेत्र युद्ध में अपने शरीर की आहुति देकर वीरों की गति पाई है जिन्होंने युद्ध में देव तुल्य तेजस्वी तुम समस्त भाइयों का डटकर सामना किया है । इतना ही नहीं दुर्योधन महान भय के समय भी निर्भय बना रहा । उन्होंने क्षत्रिय धर्म के अनुसार तुम सब से युद्ध किया इसलिए अधर्म का भागीदार होते हुए भी इस दिव्य लोक में विराजमान है । नारद जी के मुख से इन वचनों को सुनकर युधिष्ठिर का क्रोध शांत हो गया । उसके बाद उन्होंने एक बार फिर देवताओं के सामने अपने भाइयों से मिलने की इच्छा प्रकट की । उसके बाद देवदूत युधिष्ठिर को एक ऐसे लोक में ले गए जहां चारों ओर अंधेरा था के दौर को हुए मिंट्रा रहे थे । हवाएं गंध से भरी हुई थीं । चारों तरफ से रुदन का स्वर आ रहा था फिर भी युधिष्ठिर किसी तरह अपने भाइयों से मिलने के लिए देवदूत के पीछे पीछे चल रहे थे । पर जब काफी समय हो गया तो युधिष्ठर ने देवदूत से कहा हमें और कितना चलना होगा । यह सुनते दूत ने कहा हे पांडव पुत्र अगर आप वापस जाना चाहते हैं तो चल सकते हैं । यह सुन युधिष्ठिर वहां से जाने वाले थे तभी उन्हें कई रुदन का स्वर सुनाई दिया जो उन्हें पुकार रहा था और जब वो उस आवास के नजदीक गए तो उन्होंने देखा कि वहां उनके सभी भाई मौजूद थे । इतने में ही वहां अन्य देवता भी पहुंच गए और वह जगह

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स्वर्ग की तरह दैदीप्यमान हो गया । यह देख एनिस्टन ने पूछा हे देवगण यह क्या था तब देवताओं ने बताया कि आपने अश्वत्थामा के वध के बारे में झूठ फैलाया था इसलिए आपको कुछ समय के लिए नर्क में रखा गया अब आप स्वर्ग की ओर अपने भाइयों के साथ प्रस्थान करें उसके बाद पांचों पांडव और द्रौपदी स्वर्ग की ओर चल दिए और वहां पहुंच कर जब भीम ने देखा कि दुर्योधन समेत सभी कौरव वहां पहले से मौजूद हैं तो उन्होंने युधिष्ठर से पूछा कि भैया दुर्योधन ने आजीवन पापी किया उसने कभी कोई अच्छा काम नहीं किया । फिर इसे स्वर्ग क्यों मिला । क्या भगवान से न्याय में भी कोई गलती हो गई है । तब धर्मराज युधिष्ठिर ने बताया कि अपने पूरे जीवन में दुर्योधन का ध्येय एकदम स्पष्ट था । उसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने हर संभव कार्य किया । चूंकि दुर्योधन को बचपन से ही अच्छे संस्कार नहीं मिले इसलिए वह सच का साथ नहीं दे पाया । लेकिन मार्ग में चाहे कितनी ही बाधाएं क्यों न आई हो । दुर्योधन अपने उद्देश्य पर कायम रहा । दृढ़ संकल्पित रहना ही उसकी अच्छाई साबित हुई और इसी कारण उसे सारे अधर्म कार्य करने के पश्चात ही स्वर्ग मिला । नरक ने युधिष्ठिर की बातें सुनकर भीम की जिज्ञासा शांत हुई और उसके बाद कुछ समय तक कौरवों और पांडवों ने बड़े ही सुखपूर्वक स्वर्ग में समय व्यतीत किया तो दर्शकों मित्रता हूं कि आपको हमारी यह कथा पसंद आयी होगी । अगर पसंद आई हो तो ज्यादा से ज्यादा लाइक और शेयर करें । साथ ही ऐसी पौराणिक कथा की जानकारी के लिए हमारे यूट्यूब चैनल द डिवाइन केस को अभी सब्सक्राइब करें । आज के विडियो में नहीं । अब हमें ले जा सकते । विडियो को अंत तक ठीक

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कराने के लिए आपका बहुत शुक्रिया ।