हिन्दू महाकाव्यों के अनुसार कौन था सबसे शक्तिशाली नाग | Most Powerful Snake According To Hindu Epics
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- 26 Oct 2020
नाग पूजा की परंपरा भारत में युगों से चली आ रही है । केवल भारत ही नहीं और कई प्राचीन संस्कृतियों में भी इसका उल्लेख मिलता है जहां सांपों को शक्ति के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है । चलिए जानते हैं कुछ ऐसे ही शक्तिशाली नागों के बारे में और हमारे सनातन धर्म में उनकी क्या भूमिका है इस पर भी हम चर्चा करेंगे । आप सबको हमारा नमस्कार आपके अपने चैनल उन गणपति में आपका स्वागत है अगर आप ने अभी तक हमारे चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया है तो जल्दी से कर लें और बैल आइकन दबा दें ताकि हमारे हर वीडियो की जानकारी आपको सबसे पहले मिले । कालिया नामक नाग वृंदावन में बहने वाली यमुना नदी में निवास करता था । उसके वहां रहने से पानी इतना विषैला हो गया था कि कोई भी मानव पक्षी या जानवर नदी के पास नहीं जा सकता था । कालिया रमण एक द्वीप का निवासी था । नागों के शत्रु गरुड़ के डर से वह वृंदावन जलाया था । चूंकि गरुड़ को एक योगी ने श्राप दिया था कि वह वृंदावन में प्रवेश नहीं कर सकते थे । एक बार जब श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ नदी के किनारे खेल रहे थे तो उनकी गेंद नदी में गिर गई तो इस गेम को निकालने के लिए श्रीकृष्ण ने नदी में छलांग लगा दी और वहां उस कालिया नाग ने श्रीकृष्ण पे हमला कर दिया और अपना विषैला ज़हर उन्हें उगलने लगा । पर शीघ्र ही श्रीकृष्ण ने उस पर काबू पा लिया और उस नाग के सर पर सवार हो वो नदी से बाहर आए । तक्षक नाग इस नाग का वर्णन महाभारत में मिलता है । अर्जुन द्वारा खांडा वन जला देने के बाद तक्षक वहां से निकल तक्षशिला आकर रहने लगे थे । तक्षक को
नागों के राजा के साथ साथ इंद्र के मित्र के रूप में भी वर्णित किया गया है । वह पाताल वासी आठ नागों में से एक हैं । जब राजा परीक्षित को ऋषि द्वारा दिए गए एक श्राप के कारण तक्षक ने डसा था तो उसकी मृत्यु हो गई थी । परीक्षित पुत्र जनमेजय ने समस्त नागों के विनाश के लिए एक यज्ञ किया जिसमें अनेक सर्प आकर यज्ञ की अग्नि में गिरने लगे । बस जैसे ही यज्ञ में तक्षक का नाम पुकारा गया तो वह भी उस कुण्ड में गिरने लगा पर तभी वहां एक युवा ऋषि आए जिनका नाम आस्तिक था । उनके कहने पर जनमेजय ने यज्ञ रोक दिया और इस प्रकार तक्षक के प्राण बच गए । कर्कोटक नाग कर्कोटक को भगवान शिव का एक गढ़ माना जाता है । जनमेजय के नाग यज्ञ से बचने के लिए ब्रह्मा जी के कहने पर उसने भगवान शिव की तपस्या करनी शुरू कर दी । वे महाकाल वन में शिवलिंग के सामने तप करने लगा । भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसको कहा कि जो नाग धर्म का आचरण करते हैं उनका विनाश नहीं होगा । तब भगवान शिव ने कर्कोटक नाग को शिवलिंग में प्रवेश करवा दिया और उसकी जान बच गई । तब से उस शिवलिंग को कर कोटेश्वर शिवलिंग कहा जाता है । मनसा देवी मनसा ऋषि कश्यप और कद्रू की बेटी हैं । शिवपुराण के अनुसार उन्हें भगवान शिव की पुत्री भी कहा गया है । उन्हें रसातल की नाग जाति के अग्रगामी माना जाता है और वह शेष नाग और वासुकी नाग की बहन हैं । आस्तिक इन्हीं के पुत्र थे जिन्होंने नाग यज्ञ रोका था । राजा पृथु ने धरती को गाय के रूप में ढूंढ़ा था तब उसमें से विषैला जहर भी निकला जो सृष्टि को नष्ट करने को तत्पर था
। तब वासुकी के अनुरोध पर उस विष को मनसा ने ब्रह्मांड में फैलने से रोका था । मनसा देवी ने अपनी दिव्य शक्ति से कई शक्तिशाली सर्पों को उत्पन्न किया जिन्होंने उस विष को पीलिया । इस प्रकार मनसा ब्रह्माण्ड की रक्षा करने में सफल हुई । पुराणों के अनुसार मनसा देवी इतनी शक्तिशाली थीं कि उन्होंने एक बार अपने विषैले नैनों के प्रभाव से मां पार्वती को बेहोश कर दिया था । वासुकी नाग अधिकतर धार्मिक ग्रंथों में वासुकी को सर्पों का राजा बताया गया है । यह शेषनाग जी के छोटे भाई हैं । भगवान शिव के परम भक्त होने के कारण ही इन्हें शिवजी ने अपने गले में धारण किया है । जब समुद्र मंथन हुआ था तो इन्हें नेती बनाया गया था और मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया गया था । त्रिपुर दाह के समय में शिवजी की धनुष के डोर बने थे वासुकी प्राण या जीवन ऊर्जा जिसे कुंडलिनी कहते हैं उसका प्रतिनिधित्व करते हैं । शेषनाग शेषनाग जी जिन्हें आदि शेष भी कहते हैं । एक आदिकालीन बहुमुखी सर्पों के राजा हैं जिनकी ब्रह्माण्ड के निर्माण और विनाश में एक विशेष भूमिका है । नागों में सर्वप्रथम इन्हीं की उत्पत्ति हुई थी शेष नाग नाग राज । अनंत का ही एक अन्य नाम है क्षीर सागर में भगवान विष्णु शेषनाग जी पे ही शयन करते हैं । इन्होंने भगवान विष्णु तक पहुँचने के लिए फोनेटिक संसार को त्याग हजारों वर्षों तक तप किया था । शेषनाग जी को एक नया ब्रह्मांड बनते ही उसे समय चक्र प्रदान करने की जिम्मेदारी दी गई है । इसके अतिरिक्त उन्हें ब्रह्माजी द्वारा पृथ्वी को स्थिरता प्रदान करने को भी कहा गया था । इसीलिए आदि शेष जी एक सर्व कालीन प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति हैं जो नागों में श्रेष्ठ हैं और सबसे शक्तिशाली भी हैं । भगवद् गीता में
श्रीकृष्ण कहते हैं कि वह नागों में श्रेष्ठ आदि शेष हैं । आज के । बस इतना ही जाने से पहले लाइक बटन जरूर दबाते थे और अगर विडियो अच्छा लगा है तो शेयर कीजिए । आपसे फिर मिलते हैं एक नए रोचक विडियो के साथ तब तक के लिए आप सबको हमारी शुभकामना । नमस्कार ।