Phir Se ISHQ Karna Hai | Poem by Khushboo| TRD Poetry | The Realistic Dice
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- 26 Oct 2020
तेरे इंतजार को दरवाजे पर टिका रखा है तेरे इंतजार को दरवाजे पर टिकाए रखा है मैंने तेरे हिस्से का हर इतवार बाजार । शुरुआती कुछ लाइंस और लिखी हुई हैं तवज्जो बनाएगा । धूप धूल सियासी रातें धूप धूल सियासी रातें तुझे पाने की मंजिल दूर है अभी करके हर बार कोशिश हार जाना मेरा । करके हर बार कोशिश हार जाना मेरा घुट घुट के मरना हर दम घुट घुट कर मरना हर दम । फिर भी जीने की आस है बाकी तो ऐसे जैसे बहता दरिया बहता रहता है । जिन्दगी चलती रहती ऐसे जैसे बहता दरिया । ठहरा साहिल जिंदगी रुकती है तो साहिल को धुंधला सा धुआं । जियो ऐसे जैसे बहता दरिया ठहरा साहिल धुंधला सा धुआं मंजर है आँखों में धुंधले धुंधले से मंजर हैं आँखों में धुंधले धुंधले से लेकिन चाहत तो बारिश की आस बाकी है । लुत्फ़ उठा लेते हैं हम दर्द को मुस्कुराहट बनाकर लुत्फ़ उठा लेते हैं हम दर्द को मुस्कुराहट बनाकर इश्क तो लबों पर गुरूर से मुस्कुरा रहा है । इश्क तो लबों पर गुरूर सा मुस्कुरा रहा है । अभी चल करते हैं मोहब्बत फिर से थोड़ा सा चेंज करते हैं मोहब्बत फिर से । तो अपना नाम बदल मैं अपनी पहचान । है मोहब्बत फिर से तू अपना नाम बदल मैं अपनी पहचान गलतफहमियों में जीते हैं फिर से गलतफहमियों में जीते हैं । फिर से तू अपना अंदाज बदल मैं अपना आगाज । चांदनी रात की शव को फिर से पानी बताऊंगी । फुल मून नाइट होती हुई चमत्कारी होगी । सबको बढ़िया लगती है । बचे हुए नौजवानों को भी वो चांदनी रात की शब्बो फिर से तू अपने अल्फाज बदल मैं अपने साथ दुनिया से गरीब बगावत फिर से दुनिया से करीब बगावत फिर से तू अपना रंग बदल मैं अपना ईमान ।
घुंघरू टूट जाते हैं खुले आसमां में फिर से चल अब उड़ जाती हैं खुले आसमां में फिर से तू फिर से अपनी रू बदल मैं बदलू अपनी ये जान ।